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श्री चित्रगुप्त जी की आरती 

ओम् जय चित्रगुप्त हरे, स्वामी जय चित्रगुप्त हरे।
भक्तजनों के इच्छित, फल को पूर्ण करे।।

विघ्न विनाशक मंगलकर्ता, सन्तन सुखदायी।
भक्तों के प्रतिपालक, त्रिभुवन यश छायी।। ओम् जय...।।

रूप चतुर्भुज, श्यामल मूरत, पीताम्बर राजै।
मातु इरावती, दक्षिणा, वाम अंग साजै।। ओम् जय...।।

कष्ट निवारक, दुष्ट संहारक, प्रभु अंतर्यामी।
सृष्टि सम्हारन, जन दु:ख हारन, प्रकट भये स्वामी।। ओम् जय..।।

कलम, दवात, शंख, पत्रिका, कर में अति सोहै।
वैजयन्ती वनमाला, त्रिभुवन मन मोहै।। ओम् जय...।।

विश्व न्याय का कार्य सम्भाला, ब्रम्हा हर्षाये।
कोटि कोटि देवता तुम्हारे, चरणन में धाये।। ओम् जय...।।

नृप सुदास अरू भीष्म पितामह, याद तुम्हें कीन्हा।
वेग, विलम्ब न कीन्हौं, इच्छित फल दीन्हा।। ओम् जय...।।

दारा, सुत, भगिनी, सब अपने स्वास्थ के कर्ता।
जाऊँ कहाँ शरण में किसकी, तुम तज मैं भर्ता।। ओम् जय...।।

बन्धु, पिता तुम स्वामी, शरण गहूँ किसकी।
तुम बिन और न दूजा, आस करूँ जिसकी।। ओम् जय...।।

जो जन चित्रगुप्त जी की आरती, प्रेम सहित गावैं।
चौरासी से निश्चित छूटैं, इच्छित फल पावैं।। ओम् जय...।।

न्यायाधीश बैंकुंठ निवासी, पाप पुण्य लिखते।
'नानक' शरण तिहारे, आस न दूजी करते।। ओम् जय...।।

श्री चित्रगुप्त जी की स्तुति

जय चित्रगुप्त यमेश तव, शरणागतम शरणागतम।


जय पूज्य पद पद्मेश तव, शरणागतम शरणागतम।।

 

जय देव देव दयानिधे, जय दीनबन्धु कृपानिधे।


कर्मेश तव धर्मेश तव, शरणागतम शरणागतम।।

 

जय चित्र अवतारी प्रभो, जय लेखनी धारी विभो।


जय श्याम तन चित्रेश तव, शरणागतम शरणागतम।।

 

पुरुषादि भगवत अंश जय, कायस्थ कुल अवतंश जय।


जय शक्ति बुद्धि विशेष तव, शरणागतम शरणागतम।।

 

जय विज्ञ मंत्री धर्म के, ज्ञाता शुभाशुभ कर्म के।


जय शांतिमय न्यायेश तव, शरणागतम शरणागतम।।

 

तव नाथ नाम प्रताप से, छुट जायें भय त्रय ताप से।


हों दूर सर्व क्लेश तव, शरणागतम शरणागतम।।

 

हों दीन अनुरागी हरि, चाहे दया दृष्टि तेरी।


कीजै कृपा करुणेश तव, शरणागतम शरणागतम।।

Chitragupta Maharaj Aarti

Chitragupta Maharaj Stuti

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